सफलता एक ऐसा शब्द है, जो हमे समाज मे उचित न्याय और सम्मान प्रदान करता है । सफलता के बिना मनुष्य रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन पारदर्शी द्रब्य के समान है । यह शब्द बोलने में जितना आसान हैं इसकी यात्रा उतनी ही दुर्गम रास्तों से होकर जाती है ।
लेकिन जो बाधाओं को चीरकर अपना मार्ग प्रस्त कर लेता है वही सफल व्यक्ति कहलाता है ।
आज संसार मे प्रत्येक व्यक्ति सफल होना चाहता है, सफलता कौन नही चाहता, जब किसी से सवाल करोगें की कौन- कौन सफल होना चाहता हैं । तो अनायास ही हजारों की संख्या मे लोग अपनी स्वीकृति दे देते हैं, अर्थात मेरे कहने का तात्पर्य है कि हर कोई आज सफलता की पायदान पर चढ़ना चाहता है । लेकिन सफलता के पायदान पर फिसलन कितनी है किसी को नहीं पता । खासकर युवा वर्ग की बात करे तो आज युवा कुछ ही पलों मे दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर लेना चाहता हैं, सफलता के मूल सिद्धान्त से कोशों दूर त्वरित रास्ते को अपनाता है जो हमे सफलता से कोशों दूर ले जाता है ।
सफलता के चार मूलमंत्र

1- कठिन परित्रम
2- धर्यशीलता
3- अपने कार्य के प्रति ईमानदारी
4- यह बिन्दु अत्यंत महत्वपूर्ण है, अपने कार्य को‌ लेकर एकाग्रता और कार्य की रुपरेखा
अभी तक जो मेरा अनुभव रहा है, कि प्रत्येक मनुष्य का जन्म इस संसार मे किसी ने किसी उद्देश्य की पूर्ती हेतू हुआ है, किन्तु वह उद्देश्य क्या है किसी को नही ज्ञात होता, बिना उद्देश्य के मनुष्य भटकाव मे जीता रहता हैं ईश्वर ने हमे यह काया अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रदान किया है, सोचों अगर ऐसा नही होता तो हम भी आज किसी सर्प, बिच्छू, की योनी मे अपना जीवन निर्वाह कर रहे होते, लेकिन मनुष्य रुप हमारे पूवार्धं का ही परिणाम है । इस जीवन का श्रृंगार करने के लिए उद्देश्य को जाने और उसी की पूर्ती के लिए अथक प्रयास करे ।
सफल व्यक्तियों की जीवनधारा
आजकल के युवाओं मे भटकाव साफ नजर आता है, वह किसी न किसी सफल व्यक्ति का प्रशंसक तो होता है, उसी की तरह बनना भी चाहता है किन्तु उस सफल व्यक्ति के सफल होने के पीछे के परिश्रम और कार्य की रुपरेखा को नही समझता है । शार्टकट से कोई व्यक्ति सफल नहीं हो सकता इसके लिए आवश्यक है कठिन परिश्रम , सही कार्ययोजना और उसका नियोजन ।
अपनी शक्ति को पहचाने
प्रत्येक व्यक्ति मे ईश्वर ने कुछ खास गुण दिये है, कोई अच्छा बोल सकता है , कोई अच्छा लिख सकता है, कोई अच्छा गा सकता है तो कोई अच्छा अभिनय कर सकता है, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि हम अपनी शक्ति को पहचाने कैसे अपनी शक्ति को हम पहचानें बिना समाज के मैराथन में भागते रहते है । अगर हम किसी खिलाड़ी के प्रशसक है तो उसी की तरह बनने का प्रयत्न करते है, और अगर किसी अभिनेता के प्रशंसक है तो अभिनेता बनना चाहते है । लेकिन असफल होने पर इसके पीछे की वजह को नही समझ पाते । और हार मान कर निराश होकर बैठ जाते है कर्म के भरोसें । शायद कर्म मे ही नहीं लिखा था और एक बात तो बताना ही भूल गया कि सफल व्यक्तियों ने अपनी शक्ति को पहचान कर उसका सही नियोजन किया । अब बात यहाँ भी विशेष गुण-धर्म की आती है मैने पहले ही कहा था कि कोई अच्छा बोल सकता है, तो कोई अच्छा अभिनय कर सकता है, यह उसकी विशेषता थी अच्छा अभिनय करने की । आपके अन्दर हो सकता है कोई और गुण विघमान हो, इसलिए आप अभिनेता नही बन पाये तो इससे निराश होने की अवश्यकता नही है । अपने गुण को पहचान कर सही नियोजन करे सफलता अवश्य मिलेगी ।
हम अपने भाग्य के निर्माता स्वयं
आजकल के युवाओं मे भटकाव साफ नजर आता हैं । वह त्वरित ही किसी समस्या का समाधान चाहता है, एकबार असफल होनें के बाद युवाओं की चेतना शक्ति इतनी क्षीण है कि वह तुरन्त निराशा के गर्त मे चला जाता है, पुनः प्रयास करना तो दूर वह असफलता को अपनी नियति मानकर भाग्य को दो़ष देने लगता है कि शायद यह हमारे भाग्य मे नहीं लिखा था जब्कि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । उदाहरण के तौर पर मार्कजुगरबर्क, बिल गेट्स, से लेकर महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन हमारे समक्ष है ,जेम्सवाट को ही ले लिजिए अनेकों बार असफल होने के बाद भी अपने भाग्य का निर्माता स्वयं बना और आज दुनियों को उस पर गर्व है । मार्कजुगरबर्क, सचिन, विराट कोहली जैसे सितारों के प्रशंशको की फेहरिस्त को देखकर हर कोई उन्की तरह बनना तो चाहता है लेकिन उनके जैसा परिश्रम नही करना चाहता, वो आज जिस मुकाम पर है उनकी यह नियति थी आप अपने अंदर के छुपे त्रास को पहचानों और उसके लिए कार्ययोजना बनाकर कार्य करो एक दिन आप भी सफल व्यक्ति कहलाओगें ।
आप ऐसा बनो की लोग आपकी तरह बनें
जरुरी नहीं आप सचिन और विराट बनो आप ऐसा बनो कि लोग आपकी तरह बने, सचिन के आन्तिरिक गुण कुछ और थे आपके कुछ और हो सकते है, आजकल के युवा भेड़चाल चलते है अगर कोई इन्जिनियर बनने जा रहा है तो हम भी उसके पीछे चल देते है किन्तु शायद इन्जिनियर बनना हमारी नियति नही है, हमे तो एक अच्छे लेखक बनने के लिए नियति ने हमको भेजा है, इसलिए अपनी नियति को पहचानो और एकाग्र हो जाओ एकदिन आप दुनिया के सबसे बड़े लेखक बनोगे क्योकि लेखक बनना आपकी नियति है न कि इन्जिनियर, क्रिक्रेटर, या डाक्टर बनना ।
अंतर्रात्मा की आवाज सुनों
कोई क्या कहता है हमे फर्क नही पड़ना चाहिए हमारी अंतर्रात्मा जो कह रही है हम वही करेंगे, समाज का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग इसकों हमे सुनना ही नही है ठीक उसी प्रकार जैसे दूध मे पड़ी मक्खी को निकाल देते है वैसे ही इस भ्रम को अपनी चेतना से बाहर निकाल दो, कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नही होता जब मार्कजुगरबर्क ने फेसबुक की स्थापना कि थी तब उन्होनें भी नहीं सोचा था हमारा एक छोटा सा प्रयास लोगों की अभिव्यक्ति का इतना बड़ा माध्यम बन जायेगा शुरु मे यह कार्य तो छोटा ही था लोगों ने भी खुब खिल्ली उड़ायी थी, लेकिन कठिन परिश्रम और अपने कार्य के प्रति समर्पण भाव ने आज सभी आलोचकों के मुह बन्द कर दिये । प्रधानमंत्री मोदी भी कभी एक समय मे चाय बेचते थे लेकिन उन्होने अपने इस कार्य से कभी घृणा नही किया, कार्य भले ही छोटा था किन्तु कार्य के प्रति समर्पण भाव और कार्यधर्म ने उन्हे लोकप्रियता के सोपान पर पहुचा दिया इसलिए अपने कार्य को धर्म समझो और वही करो जो दिल कहता है, ये दिल माँगे मोर ।
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है
यह कहावत तो सुनी ही होगी आपने फ्लिपकार्ट, स्नैपडील‌ जैसा व्यसाय शुरु में बहुत ही दुरूह और कठिन था लोगों ने कहा कि अब फेरी लगायेगा समान धर-धर पहुँचायेगा लेकिन दृ़ढ़इच्छा शक्ति और कठिन परिश्रम ने आज इसी व्यवासाय को हजारो करोड़ का बना दिया जो कभी चन्द रुपयों में शुरु किया गया था आज वही आलोचक प्रशंसक बनकर अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे है । चाय बेचनें वाला भी अपने व्यवसाय को करोड़ो मे पहुँचा सकता है यदि इच्छाशक्ति और कठिन परित्रम का समावेश हो । इसलिए कोई कार्य छोटा या बड़ा नही होता बड़ा उसे हमारा परिश्रम और हमारी कार्ययोजना, ईमानदारी, और कार्तव्यनिष्ठा बनाती है ।
सफलता इत्र के समान है
सफल व्तक्तियों के शरीर से इत्र के समान खुश्बू आने लगती है, और असफल‌ व्यक्ति कितना भी इत्र लगा ले हमेशा उसके शरीर से दुर्गंध ही आयेगी क्योकि यह खुश्बू शरीर पर लगाये गये इत्र की नहीं होती अपितु हमारे कर्मो की होती है
मैं अपनी धटना बातता हूँ एक बार मैं एक डाक्टर के पास अपना मेड़िकल प्रमाण पत्र बनबाने गया, डाक्टर ने यह कहकर प्रमाण पत्र बनाने से मना कर दिया कि उसके पास समय का आभाव है कुछ दिन अस्पताल के चक्कर लगाने के बाद भी सफलता नही मिली, क्योकि मै एक असफल व्यक्ति था । ठीक दो साल बाद जब मैं एक समाचार पत्र का संपादक बन गया तो उसी डाक्टर से पुनः मिलने गया और मैं जैसे ही डाक्टर के पास पहुचाँ डाक्टर ने तुरन्त अपनी कुर्सी से उठकर हाथ आगे बढ़ाते हुए गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया । अब हमारा आशय यह हैं कि उसने हमारा स्वागत नहीं‌ किया अपितु हमारे कर्मों का स्वागत किया । सफलता की गाड़ी पर सवार होनें के लिए भाग्य को पीछे छोड़ कर्म करो, सफलता अवश्य मिलेगी और सफलता मिलते ही आपके शरीर से भी इत्र की खुश्बू आने लगेगी । क्योकि असफल होनें की वजह से हमारे शरीर से बदबू आ रही थी इसलिए कोई हमारे पास नहीं आना चाहता था, आज हमारे सफलता रुपी इत्र की खुश्बू ने लोगों को हमारे साथ आने को विवश कर दिया ।
सफलता के मूलंत्र
(एक कहानी के माध्यम से बताने का प्रयास करता हूँ)
सफलता की राह बहुत फिसलन भरी होती हैं यह मैनें पहले भी बताया है, लेकिन फिर भी सफल होना असंभव नही । एक बार मेढ़कों के बीच एक प्रतोयोगिता हई कि एक चिकने खम्भे की चोटी पर जो‌ चढ़ जायेगा उसे ढ़ेर सारा इनाम मिलेगा । चिकने खंभे पर चढ़ना कार्य तो बहुत दुरूह था किन्तु असंभव नहीं था । सारे मेढ़को ने बारी-बारी से चढ़ना शुरु किया उसमे से कुछ मेढ़क थोड़ी दूर जाने के बाद लुढ़क गये कुछ थोड़ा और ऊपर जाकर लुढ़क गये, कुछ थोड़ी और ऊपर तक गये लेकिन सफलता किसी को नही मिली और उन्होने अपने भाग्य को‌ दोष देकर हार मान लिया लेकिन उसमे एक मेढ़क ऐसा भी था जिसने सिर्फ अपने लक्ष्य को केन्द्रित करके बार-बार नीचे गिरने के बाद भी अपना प्रयास बन्द नही किया, सारे मेढ़क चिल्ला रहे थे अरे गया गिर गया अब तो इसकी हड्डी-पसल टूट जायेगी लेकिन इन बातो का उस मेढ़क पर कोई प्रभाव नही पड़ा और वह चढ़ता गया अन्ततः उस मेढ़क ने अपने लक्ष्य को भेदकर सारे आलोचकों का मुँह बन्द कर दिया वह ऐसा क्यो कर पाया क्योकि वह मेढ़क गूँगा और बहरा था
ठीक हमे भी उस मेढ़क की भाँति गूँगा और बहरा बनना पड़ेगा सबकी बातों को अनसुना कर दो और हर किसी को जवाब अपने मुँह से नही कर्मों से दो,कोई क्या कहता है हमारे बारे मे कहने दो जब आप सफल हो जायेंगे आलोचकों के मुँह अपने आप बन्द हो जायेंगे । और असफल लोग वही होते है जो उस उस मेढ़क की भाँति एक दो प्रयास के बाद अपने भाग्य को दोषी ठहराकर हार मान लेते हैं । इसलिए भाग्य पर नही कर्मों पर विश्वास करो अच्छे कर्म करोगें तो सफलता अवश्य मिलेगी क्योकि मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है । और जो चोटी पर चढ़ने का इनाम था वह हमे सफलता के रुप में‌ मिलेगा ।