यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता:- जिन परिवारों में स्त्रियों से अच्छा व्यवहार किया जाता है और वे सुखी हैं, उन पर देवताओं का आशीर्वाद रहता है। अर्थात मनुष्य जीवन को शांतिप्रिय व उत्कृष्ट बनाने के लिए स्त्री परमावश्यक है। जिस प्रकार शिव की शक्ति पार्वती है उसी प्रकार इंसान (पुरुष) की शक्ति नारी है। जिसे स्नेह, करुणा, त्याग, समर्पण आदि की मूर्त कहा जाता है। स्त्री के प्रत्येक पग और कण-कण में शाश्वत परमसत्ता का वास है। स्त्री काली, दुर्गा, सरस्वती और गायत्री भी है। जंगल में दहाड़ती सिंहनी और सुन्दरता बिखेरती मोरनी भी स्त्री है। नदी का प्रवाह और वृक्ष की छाव है-स्त्री। धरती की वायु, सूरज की किरण है-स्त्री। मानव की नींव, आंगन की खुशहाली, तुलसी की कलसी है-नारी। पुरुष की समस्याओं का परास्त करने के लिए चट्टान है-स्त्री। लेकिन क्या हम नारी के इस रूप व गुण से परिचित होने के बावजूद उसे मूल अधिकार व हक दे रहे हैं ? नहीं, हमने आज नारी को एक निमित्त दासी मात्र बना रखा है। जिस कारण अधिकांश महिलाओं का जीवन चार दिवारी की कैद में ही बीत जाता है। आलम यह है कि अधिकांश लोग स्त्री को विलासिता की दृष्टि से देखते हैं, जिस कारण आज महिलाओं को पग-पग पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। वास्तव में जिस भारत में स्त्री पूजनीय है आज वहीं वह अपने अधिकारों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।

आदिकाल को देवों के काल के रूप में संज्ञा प्राप्त है। क्योंकि उस दौरान महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी। जिसमें लीलावती, पदमावती, गार्गी, मीरा, संगमित्रा, निवेदिता, अहेलिया बाई आदि के बारे में कुछ लोगों को ही पता होगा लेकिन वीरता की मिसाल के रूप में रानी लक्ष्मीबाई को कौन भुला सकता है।

संसार गवाह है कि जब-जब स्त्रियों को सम्मान मिला, तब-तब धरती पर स्वर्ग का अवतरण हुआ है। जिन घरों में आज भी स्त्री को पूजा जाता है वहां भगवान की अनुकंपा बरसती है। स्त्रियों के मुखमण्डल की एक मुस्कान से समस्त वातावरण प्रफुल्लित हो उठता है। या यूं कहें कि स्त्री पुष्प की सुगन्ध के समान है, जो सम्पूर्ण संसार को अपनी सुखमय व कल्याणकारी सुगन्ध से मंत्रमुग्ध करती है। लेकिन नारी का यह स्वरूप संसार में मात्र मिथ्या ही बन गया है। जहां स्त्री भोग के एक खिलौने के रूप में हर 20 मिनट में बलात्कार और हर घण्टे दहेज के कारण स्त्री मौत के घाट उतारी जा रही है। यहां बचपन में मां-बाप राधा-कृष्ण और सीताराम के प्यार की कहानियां सुनाते हैं और अनजान शक्स से कुछ खाने और बात करने के लिए मना करते हैं लेकिन बड़े होने पर अनजान व्यक्ति से उसकी शादी करा देते हैं। इस संदर्भ में मां-बाप कहते हैं कि हमने पालपोस कर बड़ा किया है तो क्या हमें लड़का ढूंढने का भी अधिकार नहीं है ? दरअसल भारत में जातिवाद के कारण अधिकांश माता-पिता अपनी जाति में शादी करने के लिए लड़की की पसन्द को ठुकरा देते हैं, लेकिन मेरे अनुसार क्या बेटी को अपने लिए लड़का ढूंढने का अधिकार नहीं है ? जब आप स्त्री के अधिकार की बात करते हैं तो उसे कानूनी तौर पर स्वतंत्र निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार है।

दरअसल देश से जातिवाद तो हर कोई हटाना चाहता है लेकिन बेटी के लिए लड़का अपनी जाति का ही चाहिए। ब्राह्मण्ड को दलित नहीं और दलित को ब्राह्मण्ड नहीं चाहिए। गुजारती को गुजराती, राजस्थानी को राजस्थानी, हरयाणवी को हरयाणवी और पहाड़ी को पहाड़ी चाहिए। लेकिन यदि बेटी को कोई दूसरी जाति का लड़का पसन्द आ गया तो अपनी लाडली बेटी अधिकांश मां-बाप का गलत लगने लगती है। यही आलम चहूंओर है। कहीं महिलाओं को धार्मिक स्थलों में जाने की अनुमति नहीं है तो कहीं पल्लू से सिर बाहर निकालना मना है। कहीं पुरुषों से बात करने की अनुमति नहीं है तो कहीं घर से बाहर निकलने पर पाबंदी है। आज लोग विचारों से चाहें कितने ही नंगे क्यों न हो लेकिन महिलाओं का चरित्र कपड़ों से ही निर्धारित करते हैं। आज भाई सड़कों पर चलते हैं अपनी बहन की रक्षा के लिए लेकिन दूसरों की बहनों में प्रेमिका को तलाशते हैं। बहु तो सबको चाहिए संस्कारी लेकिन बेटे का नहीं बनाता कोई संस्कारी। हर कोई बेटी को पूजना चहता है लेकिन कुछ अत्याचारी भ्रूण हत्या कर देते हैं। यही कारण है कि भारत ने पिछले 10 वर्षों में 20 लाख भू्रण हत्या की हैं। लेकिन फिर भी आज हम महिला दिवस मना रहे हैं। 8 मार्च के रूप में 24 घण्टें के महिला दिवस के दौरान की लगभग 30 महिलाओं के साथ भारत में बलात्कार हो चुका होगा। न जाने कितनी महिलाएं प्रताड़ना का शिकार हो रही होंगी। बावजूद इसके हम महिला दिवस मना रहे हैं और संसार की नींव के सम्मान का ढोंग करके उसे अपमानित कर रहे हैं। क्योंकि हमारे आस-पास रोजाना न जाने कितनी महिलाएं प्रताड़ना का शिकार होती हैं लेकिन हम फिर भी मोन रहते हैं।
हमारा मोन रूप नारी की इस व्यथा का कारण है। वास्तव में नरी देवतुल्य है। आज हमें नारी के सम्मान की बात ही नहीं करनी है अपितु नारी को उसके अधिकारों व सम्मान को लौटाना भी है, क्योंकि नारी के उदय के साथ ही संसार के भविष्य का उदय होगा । नारी शक्ति ही सर्वशक्ति है। इसी शक्ति पर संसार निर्भर है। इसका सम्मान करके सुख की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। इसलिए नारी सम्मान को मात्र एक दिन के लिए नहीं बल्कि चिरकाल तक अपने जेहन में बसा कर रखना चाहिए। तभी महिलाएं खुली हवा में सांस ले सकेंगी।
नारी का अपमान जहां है, दुख अपरमपार वहां है।