राजस्थान के पंचायती राज विभाग ने एक प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा है जिसमें उनकी मंशा इस बार होने वाले पंचायती चुनावों में अशिक्षित लोगों को चुनाव लड़ने से रोकने की है. यदि प्राथमिक तौर पर देखा जाये तो इस तरह के प्रस्ताव में कोई अनुचित बात नहीं पर वर्षों से गांवों की राजनीति में पूरा दखल रखने वाले अशिक्षित लोगों के लिए इसको स्वीकार कर पाना आसान भी नहीं होने वाला है. राज्य सरकार के लिए भी इस तरह का बड़ा बदलाव करना मुश्किल ही है क्योंकि गांवों में सबसे निचले स्तर पर पार्टी के लिए काम करने वाले इस छोटी लोकतान्त्रिक इकाई के नेता ही किसी भी पार्टी के लिए रीढ़ का काम करते हैं जो उन्हें विधान सभा और लोकसभा चुनावों के लिए समर्थन और सहयोग दिया करते हैं. इस स्थिति में राजस्थान सरकार के पास कड़े कदम उठाए जाने के सीमित विकल्प ही रह जाते हैं जिन पर विचार करके ही कोई कानूनी कदम उठाया जा सकता है. पंचायती राज विभाग का यह प्रस्ताव संविधान की भावना के अनुकूल भी है क्योंकि देश के आज़ाद होने के सातवें दशक में जब गांवों तक विकास की हर किरण पहुँचने लगी है तो आखिर शिक्षा को कैसे पीछे छोड़ा जा सकता है ? बेहतर हो कि इस बार के चुनावों में इसे लागू करने की कोशिश अवश्य की जाये क्योंकि पंचायती राज विभाग के अनुसार पंचायतों में वित्तीय अनियमितता के लगभग तीन हज़ार मामले लंबित हैं और इनमें से अधिकांश वे मामले हैं जिनमें सरपंचों के अशिक्षित होने के कारण उनके अंगूठा लगाने से पैदा हुए लगते हैं. आज विभिन्न परियोजनाओं के लिए केंद्र तथा राज्य सरकारें करोड़ों रूपये ग्राम पंचायतों को दिया करते हैं तो उस स्थिति में आखिर इस तरह की धोखाधड़ी को रोकने के लिए सरकार के पास क्या विकल्प शेष बचते हैं यही सबसे बड़ी चुनौती है. सरकार इन नेताओं की अनदेखी भी नहीं कर सकती है क्योंकि पार्टी को चुनावों में इन नेताओं की आवश्यकता हर बार ही पड़ने वाली है. वैसे इस मामले में राजस्थान के पंचायती राज विभाग के अधिकारी बधाई के पात्र हैं कि उनकी नज़र गांवों के विकास में भ्रष्टाचार फ़ैलाने वाली सबसे बड़ी कमी की तरफ गयी है. सरकार के लिए यह फैसला मुश्किल भरा अवश्य है पर भले ही इस चुनाव से इसको पूरी तरह से लागू न किया जा सके परन्तु शिक्षा पर ध्यान देने का दबाव बनाये जाने की पहल करने की आवश्यकता तो इस बार महसूस होनी ही चाहिए. एक विकल्प यह हो सकता है कि इस बार चुनावों में अशिक्षितों को इस शर्त के साथ मैदान में आने दिया जाये कि वे अगले छह महीने यह एक वर्ष में साक्षर होने के साथ दो वर्षों में पढ़ना लिखना भी सीखेगें और इसमें विफल होने पर उनसे यह पद ले लिए जायेगा. दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि इस बार कुछ छूट देकर अगले चुनावों से शैक्षिक योग्यता को भी अर्हता में शामिल कर दिया जाये क्योंकि जब तक शिक्षा पर इस तरह का दबाव नहीं बनाया जायेगा तब तक इस तरह से आगे आने वाले नेता अपने लिए कोई न कोई मार्ग खोजने में सफल ही रहने वाले हैं.
Pages
- About Indian Youth Club
- Advocates and Ex-Judges Cell
- All Events
- Art & Culture Cell
- Blog
- Business Cell
- Complaint Cell
- Contact Address Home Page
- Doctor’s Cell
- Education Cell
- Event
- Events
- Events
- Ex-Soldier Cell
- FIGHT AGAINST CORRUPTION
- FIGHT AGAINST CRIME
- FIGHT AGAINST TERRORISM
- FIGHT AGAINST TERRORISM
- Gallery
- Home slider
- Home video
- Information
- Join Us
- launch magazine of aaaj ki delhi
- Make Donations
- Make Donations Ref
- Media Cell
- Mission
- Organization
- Others Cell
- Our Blog
- Post your Blog
- PROTECT INDIAN CULTURE
- PROTECT THE ENVIRONMENT
- RURAL EDUCATION DEVELOPMENT
- Science & IT Technology Cell
- Search
- Search By Country
- Service Class Cell
- Sports Cell
- Submit Post
- Thank You
- View all post
- Voting
- Women Cell
- WOMEN’S AND CHILDREN DEVELOPMENT
- Youth Icon Awards
0 Comments
You must be logged in to post a comment.