‘‘शब्दों पर मत जाइए मिया, भावनाओं को समझिए’’। यह कथन हम अपने जीवनकाल में अक्सर कहते व सुनते हैं। जो यह दर्शाता है कि शब्दों के पीछे छिपी भावना को समझना चाहिए क्योंकि कुछ लोग शब्दों के कच्चे होते हैं लेकिन उनकी भावना परिपक्व होती है। एक हद तक यह सही भी है। किन्तु शब्दों का प्रभाव हर परिस्थिति में समान ही रहता है। हमारा जीवन भी शब्दों का ही एक जाल है |
वास्तविक परिवेश में जीवन शब्दों के चारों आरे ही घूमता रहता है। शब्द ही हमारे जीवन की दीशा-धारा तय करते हैं। शब्दों का संबंध परोक्ष-अपरोक्ष रूप् से व्यक्ति के अंतःकरण से होता है। क्योंकि शब्दों का उद्भव हमारे भीतर से ही होता है। भीतर से उद्गम होने के कारण शब्दों का प्रभाव सबसे अधिक हमारे अंतःस्थ में पड़ता है। शब्दों की माया से जीवन के कायाकलप का हमें पता भी नहीं चलता है।
वास्तव में शब्द व्यक्ति की पहचान है। जीवन का आधार है। शब्द जीवन में आनन्द का मार्ग भी बनते हैं और दुख का कारण भी। या यूं कहिये कि शब्द ही स्वर्ग है और नर्क भी शब्द ही है। शब्दों के माध्यम से ही पालनहार होता है और विध्वंशकारी के रूप में विनाश भी शब्द ही करते हैं। इसलिए शब्दों को चयन जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। सद्शब्द हमें सद्बुद्धि और सनमार्ग की ओर अपितु कुशब्द कुमार्ग की ओर अग्रसर करते हैं।
मनुष्य जीवन शब्दों द्वारा लिखित अध्यायों का एक अनमोल संग्रह है, जिसका रचयता इंसान आप है। यही शब्द जीवन का आधार बनते हैं और काल भी। शब्दों में भेेद अनेकों हैं लेकिन जीवन इन्हीं का खेल हैं। यह खेल मानव रूपी खिलाड़ी के ऊपर ही निर्भर करता है। क्योंकि जिन अक्षरों का जोड़ गाली बनता है, उन्हीं से दुआ बनकर कृपा भी बरसती है। वरदान भी वही अक्षर है और अभिशाप भी। लेकिन वर्तमान में हम शब्दों की महिमा से या तो परिचित नहीं हैं या फिर भिज्ञ होते हुए भी उसका खण्डन कर रहे हैं। आलम यह है कि छोटे बच्चे से लेकर वृद्ध की जुबान पर अपशब्दों का खजाना एकत्रित हो गया है। जिससे समाज एक विकृत रूप धारण कर अनजानी राहों पर चल रहा है।
इस अनजानी राहों को अनुगमन करते-करते हमारा मस्तिष्क भी वास्तविकता से अनजान है। यह अनजानापन अज्ञानता के कारण है। जिसमें लोग इतने मग्न है कि उन्हें यह ज्ञान प्रतीत हो रहा है। जिस कारण वह शब्दों के चयन में अपरिपक्व हैं। परिणामतः कई लोग सगे संबंधियों को भी कई बार अपशब्दों से पिरोई माला पहना देते हैं। और कहते हैं कि हमने तो प्रेमवश उन्हें यह शब्द कहे हैं। लेकिन हमें ज्ञात होना चाहिए कि तीर चाहे भाई को लगे या प्रतिद्वंदी को, घाव दोनों के एक समान ही होगा। जिस प्रकार तीर लगने से पहले यह नहीं देखता कि सामने देवता है या रक्षस, दोस्त है या दुश्मन। वह दोनों के लिए मृत्यु का मार्ग ही प्रसस्त करता है। उसी प्रकार अपशब्द चाहे भाई को कहें जाये या दुश्मन को, वह समान प्रभाव डालते हैं। वास्तविक रूप् से अपशब्द/गाली सर्वथा उसका उद्भव करने वाले को ही क्षति पहुंचाती है न कि सुनने वाले को। क्योंकि हमारे मुख से निकला प्रत्येक शब्द लौटकर समारे पास ही वापस आता है।
शब्दों की यही महिमा है। जो हम कहते हैं, वह उससे तीव्र शक्ति से हमारे पास ही लौटकर हमें नुकसान पहुंचाता है। जैसे बाढ़ का पानी सबसे अधिक विनाशलीला वहीं मचाता है जहा से उसका उद्भव होता है। ठीक उसी प्रकार शब्दों की लीला है। हम यह सोचते हैं कि हमारे अपशब्दों से दूसरों का अपमान हुआ है। लेकिन वास्तव में इसके विपरी ता होता है। क्योंकि शब्दों का जन्म हमारे भीतर से होता है, जिससे वह सबसे अधिक विध्वंश हमारे भीतर जगत में ही मचाता है। यहीं से हमारी भावी दिशा-धारा का भी निर्धारण होता है। क्योंकि हम जो सोचते हैं, वह करते हैं, और वही बन भी जाते हैं। इसलिए हमें यह याद रखना होगा कि हमारा जीवन एक फिल्म के समान है। जहां हम ही मुख्य किरदार की भूमिका में है। यहां हम-स्वयं अपनी पटकथा कहते हैं। और नए पहलूओं का निर्धारण करते हैं। एक मात्र हम ही हैं जो अपने जीवन रूपी फिल्म के सभी दृश्यों को करते हैं। यहां कैमरा और निर्देशक परमात्मा के रूप में एक अदृश्य स्वरूप होता है, जो हमारे कर्मानुसार प्रतिफल देता है।
हमारा जीवन ईश्वर द्वारा बनाई गई एक कोरी किताब हैं, जिसको हमें अपने शब्दों में लिखना है। लेकिन इस जीवन को सुखमय और आनन्दप्रद बनाना हमारे शब्दों के चयन पर निर्भर करता है। इसलिए हमें सर्वथा सद्शब्दों का चयन करना चाहिए क्योंकि हमारा प्रत्येक शब्द अपनी पूरी गति के साथ हमारे पास लौटकर आता है और अपने भावार्थानुसार फल प्रदान करता है। इसलिए अच्छा, देखो, अच्छा सुनो और अच्छा बोलो।