इस बात की कल्पना भी जुगुप्सा पैदा करती है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की शिकार कोई महिला और बच्ची भयावह दुख का सामना कर रही हो और इस घटना को एक जिम्मेदार पद पर बैठा नेता अपनी राजनीति के चश्मे से दुनिया के सामने पेश करे। इस बात की कल्पना भी जुगुप्सा पैदा करती है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध की शिकार कोई महिला और बच्ची भयावह दुख का सामना कर रही हो और इस घटना को एक जिम्मेदार पद पर बैठा नेता अपनी राजनीति के चश्मे से दुनिया के सामने पेश करे। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में शहरी विकास मंत्री आजम खान शायद ऐसी घटनाओं के समय न्यूनतम संवेदनशीलता बरतना भी जरूरी नहीं समझते। प्रदेश की राजनीति में उन्हें एक वरिष्ठ नेता के तौर पर जाना जाता है। लेकिन आखिर वे कौन से कारण हो सकते हैं कि बुलंदशहर में सामूहिक बलात्कार के मामले में जहां उन्हें सरकार की ओर से और अपने स्तर पर भी सक्रिय होकर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई और पीड़ितों के लिए इंसाफ सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए थी, वहां उन्होंने इस घटना के पीछे विरोधियों की राजनीतिक साजिश की आशंका जता दी? जबकि इस आपराधिक वारदात का जो ब्योरा सामने आया है, वह किसी भी संवेदनशील इंसान को दहला देने वाला है।
सुनसान हाइवे पर अपराधियों ने कार को रोक कर पुरुष सदस्यों को बांध कर एक महिला और उसकी नाबालिग बेटी से सामूहिक बलात्कार किया तो क्या यह किसी के लिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का मसला हो सकता है? उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है। अगर उन्हें इसके पीछे कोई साजिश नजर आई भी तो उसकी परतें खोलना और दोषियों को सामने लाना किसकी जिम्मेदारी है? निर्बाध यातायात के लिए सुनसान इलाकों से गुजरने वाली अच्छी सड़कें तो बना दी गर्इं लेकिन उन पर चलने वालों की सुरक्षा कौन तय करेगा? क्या इस तरह के गैरजिम्मेदार बयान नागरिकों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की नाकामी को विपक्ष की साजिश बता कर अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ने की कोशिश नहीं हैं? आखिर किस वजह से आजम खान को सामूहिक बलात्कार की भयावहता की शिकार महिला और बच्ची के दुख के बजाय अपनी राजनीति और सरकार की फिक्र पहले हुई?
विडंबना यह है कि इस मसले पर आजम खान की संवेदनहीनता के खिलाफ आवाज उठाने वाले कुछ नेताओं ने भी बताया कि वे उनसे अलग नहीं हैं। भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता आईपी सिंह ने आजम खान की आलोचना करते हुए यहां तक कह डाला कि अगर उनकी बेटी और बीवी से सामूहिक बलात्कार हो जाए, तब आंख खुलेगी! दरअसल, स्त्रियों के दमन और उत्पीड़न की मानसिकता समूची सामाजिक व्यवस्था में घुली हुई है। इस हालत में बदलाव या समाज को आगे ले जाने के दावे के साथ नुमाइंदगी करती जिस राजनीतिक व्यवस्था से उम्मीद की जाती है, वह भी कई बार दमित-शोषित तबकों और स्त्रियों के दुख के साथ खिलवाड़ करती दिखती है।
अक्सर नेताओं या धर्मगुरुओं की ओर से ऐसे बयान आ जाते हैं जिनसे यही लगता है कि पद और कद हासिल हो जाने का मतलब यह नहीं है कि स्त्री-विरोधी मानसिकता और सोच में भी बदलाव आ गया। बलात्कार जैसे अपराध के मसले पर अगर मुलायम सिंह बिना सोचे-समझे यह कह देते हैं कि लड़कों से गलतियां हो जाती हैं या फिर कोई धर्मगुरु या नेता महिलाओं को ही कठघरे में खड़ा कर देता है तो इसके पीछे कौन-सी मानसिक जड़ता या कुंठा काम करती है? बलात्कार स्त्रियों के शरीर, उनकी अस्मिता और गरिमा के खिलाफ सबसे भयावह अपराध है। इसके बावजूद इस अपराध में दोषसिद्धि और सजा की दर महज पच्चीस फीसद के आसपास है। अगर समाज की नुमाइंदगी करने का दावा करने वाले नेता इस अपराध का दंश झेलने वाली स्त्री की पीड़ा नहीं समझ सकते, तो कम से कम इस गंभीर मसले पर खिलवाड़ नहीं करें।