भारत की स्वतंत्रता में तीन ऐसे वीर सपूत हैं, जिनकी शहादत ने देश के नौजवानों में आजादी के लिए अभूतपूर्व जागृति का शंखनाद किया। 23 मार्च 1931 का वह दिन था जब अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांति कि एक मशाल को बुझाने की कोशिश की, लेकिन उस एक मशाल ने इतने चिराग रोशन कर दिए कि आजादी सवेरा बनकर लौटी। देशभक्त सुखदेव,भगतसिंह और राजगुरू को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च को लाहौर षडयंत्र केस में फाँसी पर चढा दिया था। इन वीरों को फाँसी की सजा देकर अंग्रेज सरकार समझती थी कि भारत की जनता डर जाएगी और स्वतंत्रता की भावना को भूलकर विद्रोह नही करेगी। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नही हुआ बल्की शहादत के बाद भारत की जनता पर स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वत्र न्यौछावर करने का रंग इस तरह चढा कि भारत माता के हजारों सपूतों ने सर पर कफन बाँध कर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेङ दी और लोगों में एक गज़ब का उत्साह दिखा आज़ादी के लिए। अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी का यह संघर्ष आज़ादी न मिलने तक निरन्तर जारी रही बस फर्क यहीं रहा की चेहरे बदलते रहे लेकिन सबका मकसद एक ही था…देश को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराना।